दुनिया के 121 देशों में गांधी की प्रतिमा स्थापित है,यही मानवतावाद का उदाहरण है- डॉ आशीष कंधवे

दुनिया के 121 देशों में महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित है यही मानवतावाद का सबसे बड़ा उदाहरण है- डॉ आशीष कंधवे
 उज्जैन। गांधी जी का आध्यात्मिक मानवतावाद पुस्तक का लोकार्पण करते हुए यह बात विश्व हिंदी साहित्य परिषद के अध्यक्ष एवं विदेश मंत्रालय भारत सरकार की साहित्यिक पत्रिका गगनांचल के सह संपादक डॉ आशीष कंधवे ने कहीं।
स्थानीय कालिदास अकादमी में गांधी जयंती के अवसर पर युवा समाजसेवी एवं साहित्यकार डॉ प्रवीण जोशी के पुस्तक का लोकार्पण 2 अक्टूबर को किया गया। पुस्तक लोकार्पण के मुख्य अतिथि डॉ मोहन गुप्त एवं अध्यक्ष डॉक्टर शिव चौरसिया थे।
 सारस्वत अतिथि के रूप में दिल्ली से पधारे डॉ आशीष में कहां की गांधीजी मानवतावाद  का प्रत्यक्ष उदाहरण आज की पीढ़ी के सामने है आपने अपनी बात कहते हुए कहा की गांधीजी के विचार भारत ही नहीं बरन दुनिया के 121 देशों मैं पहले हुए हैं आपने बताया कि गांधीजी हिंदी के पक्षधर थे और उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं था।
 पुस्तक पर बात करते हुए मुख्य अतिथि के रूप में डॉ मोहन गुप्त ने कहा की गांधीजी अपने आप में एक विचार हैं जो भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में फैला है अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉक्टर शिव चौरसिया ने बताया कि प्रवीण जोशी युवा साहित्यकार है और इन्होंने गांधी पर किताब लिख कर अतुलनीय कार्य किया है गांधी को समझना है तो गांधी के चिंतन को समझना होगा आपने कहा कि गांधी शब्द ही अपने आप में समग्र है पुस्तक पर चर्चा करते हुए चिंतनशील व्यंग कार डॉ पी के नरोरा पुस्तक के बारे में जानकारी दी।


हिंदी का भविष्य उज्जवल है- डॉ आशीष कंधवे*


उज्जैन। दैनिकभास्कर  से चर्चा करते हुए डॉ आशीष कंधवे ने बताया कि अमेरिका के 21 विश्वविद्यालयों में लगभग 2500 से अधिक छात्रों को हिंदी पढ़ाई जाती है तो वही जापान के 108 महाविद्यालयों में हिंदी का पठन-पाठन होता है । इसलिए हमारी भाषा अत्यंत समृद्ध है और इसे वैश्विक स्तर पर  कोई खतरा नहीं है । हिंदी की बानगी किस चरम पर है यह इस बात से भी परिलक्षित होता है की ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी इस वर्ष 30  शब्दों को  अपने शब्दकोश में शामिल किया है । ऑक्सफ़ोर्ड  अब वह हिंदी के शब्दों को भी मूल रूप से शामिल करने को बाध्य हो गई है जैसे इस वर्ष ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने सूर्य नमस्कार, अच्छा, आधार, चड्डी, तथा नारी शक्ति जैसे हिंदी शब्दों को भी म शामिल किया है । इसलिए कहा जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर हिंदी समृद्ध है । यदि हिंदी को खतरा है तो अपने ही घर में है । राजनैतिक इच्छाशक्ति तथा देश के आम नागरिकों को हिंदी से ढोकर रखा जा रहा है । सिर्फ साहित्यकारों के प्रयास से हिंदी भाषा का विकास नही। होगा बल्कि इसे बाजार और रोजगार की भाषा के रूप में उचित मान देना होगा । अपनी बोलचाल में तथा शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी के प्रयोग पर जोर देना होगा अन्यथा हिंदी विश्व में तो मुकाम हासिल कर लेगी पर अपने ही घर में अनाथ जैसी हो जाएगी।
 डॉ आशीष विश्व हिंदी साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष है तथा इन्होंने हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए 50 से अधिक देशों की यात्रा की है । डॉ. कंधवे  प्रवासी साहित्य में  पीएचडी की  उपाधि  भी  प्राप्त की गई है । 
भारत सरकार ने डॉ आशीष को देश की सबसे प्रतिष्ठित पत्रिका गगनांचल का संपादन का प्रभार भी सौंपा है ।