भारतीय भाषाओं की चिंता से ज्यादा जरूरी है संरक्षण- संवर्धन के लिए कदम उठाएं- प्रो. पांडे

भाषाओं की चिंता से ज़्यादा जरूरी है संरक्षण - संवर्द्धन के लिए कदम उठाए जाएँ - प्रो पांडे 


भारतीय भाषाओं और बोलियों के संरक्षण की चुनौतियाँ और सम्भावनाएँ पर विशेष व्याख्यान सत्र सम्पन्न 



उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के वाग्देवी भवन में महात्मा गांधी के 150 वें जयन्ती वर्ष के अवसर पर केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो नन्दकिशोर पाण्डे का विशिष्ट व्याख्यान सम्पन्न हुआ। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग और गांधी अध्ययन केंद्र द्वारा आयोजित यह व्याख्यान सत्र भारतीय भाषाओं और बोलियों के संरक्षण की चुनौतियाँ और सम्भावनाएँ पर केंद्रित था। प्रो पांडे ने अपने व्याख्यान में कहा कि संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं से अनेक नवीन भाषाओं और बोलियों का विकास हुआ है। यहाँ कोई भी भाषा मृत नहीं हुई है, उनकी कोख से सदैव नई - नई भाषाओं का जन्म होता आ रहा है। भाषाओं की चिंता करने से ज़्यादा जरूरी है कि हम उनके संरक्षण और संवर्द्धन के लिए ठोस कदम उठाएँ। आज कई लोग भाषाओं और बोलियों के मरने को लेकर बौद्धिक चर्चा करते तो दिखाई दे रहे हैं लेकिन वे उनको जीवन्त बनाए रखने के लिए क्या कुछ कर रहे हैं, यह देखना होगा। पूर्वोत्तर राज्यों में सैकड़ों जनजातीय भाषाएँ जीवन्त हैं। वहाँ के जनजातीय समुदायों ने अनेक अभावों और संघर्षों के बीच अपनी सभ्यता, संस्कृति और ज्ञान परम्पराओं को जीवित रखा है। उनके पास उपलब्ध ज्ञान-विज्ञान से कथित शिष्ट समुदायों को बहुत कुछ सीखना होगा। 



प्रारम्भ में विषय प्रवर्तन करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि लोक एवं जनजातीय समुदायों की संस्कृति और भाषाएँ इस देश की पहचान हैं। उनके आपसी रिश्तों को और मजबूत करने की जरूरत है। विकास के कथित प्रतिमानों में लोक और जनजातीय समुदायों को लेकर कोई सजग दृष्टि दिखाई नहीं दे रही है। यही कारण है कि अधिसंख्य लोक एवं जनजातीय समुदायों को विस्थापन और कृत्रिम जीवन के दबावों से रूबरू होना पड़ रहा है। उनके विकास की संकल्पना उनकी अपनी शर्तों और जरूरतों के बरअक्स तय होनी चाहिए। सदियों से प्राप्त उनके स्वाभाविक जीवन का हक उनसे छीना जा रहा है। उनके द्वारा सदियों से संरक्षित अपार ज्ञान सम्पदा का लोप हो रहा है। लोक एवं जनजातीय भाषाओं और संस्कृति के संरक्षण का सपना उनकी जड़ों से जुड़कर ही साकार किया जा सकता है।



इस अवसर पर हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो गीता नायक, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ सी एल शर्मा सहित उपस्थित जनों ने प्रो पाण्डे द्वारा हिंदी सहित लोक और जनजातीय भाषाओं के शिक्षण, संरक्षण और विकास के लिए किए जा रहे अविराम प्रयत्नों के लिए उनका सारस्वत सम्मान किया।


आयोजन के पूर्व प्रो नन्दकिशोर पांडे एवं श्रीमती डॉ वन्दना कुमारी पांडे ने गांधी अध्ययन केंद्र के ग्रन्थालय और संग्रहालय का अवलोकन और महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।


कार्यक्रम में प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो गीता नायक, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ सी एल शर्मा, डॉ रचना जैन, श्रीमती हीना तिवारी सहित अनेक शिक्षक, शोधकर्ता और विद्यार्थी उपस्थित थे। 


संचालन डॉ रचना जैन ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ सी एल शर्मा ने किया।