अब जांच के नाम पर लीपापोती
उज्जैन. एमपी अजब है, सबसे गजब है... प्रदेश सरकार ने यह गीत मध्यप्रदेश की खुबियां गिनाने के लिए बनाया था, लेकिन इस गीत को चरितार्थ विक्रम विश्वविद्यालय करता है। यह फर्जीवाड़े में जो कुछ हो जाए वह कम है। ऐसा ही अजब-गजब मामला है। एक स्कूली शिक्षक को विश्वविद्यालय प्रोफेसर बना देने का। हालांकि यह फर्जीवाड़ा कोई नया नहीं है। पूर्व में भी प्रकाश में आता रहा है। राजभवन से प्रकरण की जांच लंबित है, लेकिन विश्वविद्यालय में नवीन वर्ष 2020 की शिक्षक वरिष्ठता सूची के प्रकाशन के चलते फिर चर्चा में आया है। उक्त स्कूली शिक्षक को वरिष्ठता सूची में लेने पर आपत्ति आई है। जिसकी जांच कमेटी को सौंपी है।
स्कूली शिक्षक अरूण पाण्डे
स्कूली शिक्षा विभाग में पदस्थ अरूण पाण्डे शासकीय शिक्षा महाविद्यालय उज्जैन में प्रतिनियुक्ति पर सेवा दे रहे है। यहां पर संचालित बीएड कोर्स की संबंद्धता विक्रम विश्वविद्यालय से है। इसी का लाभ उठाकर अरूण पाण्डे विश्वविद्यालय की वरिष्ठता सूची में फर्जीवाड़ा कर घुस गए।
कमेटी से लगाई जुगाड़
मामला कमेटी के सामने गया। तो अधिकारियों ने आपत्ति में खांमी निकाल कर उसे खत्म करने की फाइल चला दी है। इधर, शिकायतकर्ता भरत शर्मा का कहना है कि उक्त प्रकरण की शिकायत एक वर्ष से लंबित है। अगर निराकरण नहीं हुआ। जल्द वैधानिक कार्रवाई की जाएगी।
यह है आपत्ति
- अरूण पाण्डे स्कूली शिक्षा विभाग में पदस्थ है। इसलिए यह विवि अधिनियम के तहत नहीं आते है।
- अरूण पाण्डे की शिक्षा साइंस विषय की है, जबकि वह विवि में शिक्षा संकाय में प्रोफेसर पद पर है।
- प्रोफेसर पद के लिए यूजीसी से तय नियुक्ति प्रावधान व वेतनमान वाला व्यक्ति होना चाहिए, लेकिन अरूण पाण्डे
- स्कूली शिक्षा विभाग में पदस्थ है। वहां यह व्यवस्था नहीं है। इसी के साथ अन्य गड़बड़ी भी है।
इनका कहना है।
वरिष्ठता सूची पर आपत्ति आई है। उसे कमेटी के सामने प्रस्तुत किया है।
डीके बग्गा, कुलसचिव विक्रम विवि