सांस्कृतिक क्रांतियों ने बदला है संस्कृति और भाषाओं को- प्रो. मिश्र



विक्रम विश्वविद्यालय में भाषाओं पर केंद्रित दोदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन हुआ 


 


देशभर के छह भाषाओं के विद्वान भाग ले रहे हैं संगोष्ठी में 



उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा भाषाओं पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ 2 मार्च को हुआ। विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती सभागार में आयोजित उद्घाटन समारोह के प्रमुख अतिथि मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, भोपाल के निदेशक एवं विक्रम विश्वविद्यालय एवं रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर के पूर्व कुलपति प्रो रामराजेश मिश्र थे। सारस्वत अतिथि महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो पंकज लक्ष्मण जानी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा ने की।



पूर्व कुलपति प्रो रामराजेश मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत में कई सांस्कृतिक क्रांतियाँ हुईं। उन्होंने भाषाओं और संस्कृति को बदला है। मानवीय सभ्यता के विकास और सम्पर्क से एक भाषा दूसरी भाषा के साथ जुड़ती है। समस्त भाषाओं का अपना अपना सौंदर्यशास्त्र होता है। लोक भाषाओं की अपनी मिठास होती हैं, उनके महत्त्व को स्वीकार किया जाना चाहिए। गांधी जी के अंदर और बाहर की भाषा एक ही थी, इसीलिए वे पूरे विश्व को प्रेरणा दे रहे हैं। 



सारस्वत अतिथि महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो पंकज लक्ष्मण जानी ने कहा कि भारत विविध भाषाओं और बोलियों का देश है। भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है। संकेत भाषाएँ पहले थीं। बाद में उनका विकास हुआ, जिनसे सूक्ष्म संवेदनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति होने लगी। भाषाओं के माध्यम से अपने लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। कई छोटी नदियों से बड़ी नदी बनती हैं, वही क्रम बोलियों से भाषाओं के विकास का होता है।



अध्यक्षता करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि भाषा सरस्वती है। वाक, भाषा, भारती सरस्वती के पर्याय हैं। भारत में अष्टाध्यायी और अमरकोश को विशेष मान्यता मिली हुई है। भारतीय दृष्टि में  सृष्टि की उत्पत्ति शब्द से हुई है। भाषाएँ सरस्वती का ही रूप हैं। भाषाओं के भेद को तोड़ने की आवश्यकता है। भाषाओं के घालमेल से बचना होगा। लिखित भाषा से बजाय हम संकेतों का इस्तेमाल करने लगे हैं, जो उचित नहीं।   



अतिथियों का स्वागत एवं स्मृति चिह्न अर्पण मुख्य समन्वयक प्रो अचला शर्मा एवं सह समन्वयक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने किया। 


प्रथम दिवस पर तीन तकनीकी सत्रों में देश के विभिन्न भागों के विद्वानों ने विशिष्ट व्याख्यान दिए। इनमें डॉ मोहन गुप्त,  प्रो पंकज लक्ष्मण जानी, प्रो राजुल भार्गव, जयपुर, उज्जैन, प्रो अचला शर्मा, प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा शामिल थे। सांध्यकालीन सत्र में डॉ मोहन गुप्त ने भाषा की उत्पत्ति और भारोपीय भाषा परिवार पर महत्त्वपूर्ण व्याख्यान सह प्रस्तुति की।  



स्वागत भाषण प्रो अचला शर्मा ने दिया। अतिथियों का स्वागत प्रो गीता नायक, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ अंजना पांडेय, डॉ एस के मिश्रा, डॉ बालकृष्ण आंजना, डॉ रूबल वर्मा, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा आदि ने किया। वैदिक मंगलाचरण डॉ महेंद्र पंड्या ने किया। 



इस संगोष्ठी में हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, पाली, प्राकृत एवं रूसी भाषाओं के विशेषज्ञ वक्ता भाग ले रहे हैं। 



संचालन डॉ रूबल वर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने किया। 



आयोजन में भाषा एवं साहित्य प्रेमियों के साथ प्रबुद्ध जनों से बड़ी संख्या में सहभागिता की।


 


समापन दिवस पर 3 मार्च को तीन तकनीकी सत्र होंगे 


संगोष्ठी का समापन 3 मार्च को दोपहर 3:30 बजे स्वर्ण जयंती सभागार में होगा। समारोह के मुख्य अतिथि अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो रामदेव भारद्वाज एवं प्रसिद्ध संस्कृतविद एवं पूर्व कुलपति प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी, पुणे होंगे। अध्यक्षता कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा करेंगे। 


समापन दिवस पर स्वर्ण जयंती सभागार में तीन तकनीकी सत्रों में देश के विभिन्न भागों के विद्वान विशिष्ट व्याख्यान देंगे। इनमें प्रो हरीश नवल, नई दिल्ली, प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी, पुणे, प्रो बी हसन, उज्जैन, प्रो जिनेंद्र कुमार जैन, उदयपुर आदि प्रमुख हैं।