द्रौपदी तत्कालीन नारी अत्याचार की प्रतीक - डाॅ  जोशी
 

 वोकल एप पर महाभारत संबंधी प्रश्नों के जवाब में हुआ जिज्ञासाओं का समाधान

उज्जैन।"द्रौपदी द्वापरकालीन नारी अत्याचार की प्रतीक है और युधिष्ठिर धर्म की पराकाष्ठा। दुर्योधन और दुशासन अधर्म अनीति और अत्याचार के प्रतीक हैं। महाभारत की कथा तत्कालीन भारतीय समाज का ऐसा चित्रण है जिसमें धर्म के हाथों अधर्म की पराजय होती है।"  उक्त उद्गार वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद डाॅ देवेन्द्र जोशी ने कोरोना लाॅक डाउन में वोकल एप पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हुए व्यक्त किए।


करीब 30 हजार से अधिक दर्शक श्रोताओं तक अपनी बात पहुंचा चुके डाॅ जोशी ने टीवी पर प्रसारित महाभारत संबंधी अनसुलझी जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए कहा कि जैसे निर्भया काण्ड वर्तमानकालीन नारी अत्याचार की पराकाष्ठा है वैसे ही द्रौपदी चीर हरण महाभारत कालीन नारी अत्याचार का प्रतीक है। रचनाकार का काम समाज का सच सामने लाना है। तभी तो साहित्य समाज का दर्पण है। उससे सबक लेना या न लेना यह समाज का काम है। महर्षि वेद व्यास ने बडी खूबसूरती अपने समाज का सच समाज के सामने लाने की चेष्टा की है। उन्होंने कहा कि धर्मराज कहलाने वाले युधिष्ठिर द्वारा अपने साम्राज्य, भाईयों और पत्नी को जुंए में हारना इसलिए जरूरी था कि इसके बिना द्युत क्रीडा जैसी बुराई के दुष्परिणाम को सामने ला पाना संभव नहीं था। समाज में प्रचलित बुराई को सामने लाने के लिए यह किया गया। ताकि यह मैसेज जा सके कि बुराई धर्मराज जैसे महापुरूष को भी पथभ्रष्ट करने से नहीं चूकती।

समाज पर इस तरह के सीरियल और ग्रंथों के प्रभाव की चर्चा करते हुए आपने कहा कि अतीत भी वर्तमान की तरह ही अच्छाई और बुराई का समन्वय था। जिसने उसमें से अच्छाई ग्रहण की उसका जीवन संवर गया और जिसने बुराई को अपना आदर्श माना वह पथ से भटक गया। अतः एक आम मनुष्य की कोशिश यह होनी चाहिए कि अतीत के गौरव से प्रेरणा पाकर अपने वर्तमान को संवारते हुए भविष्य की सुदृढ नीव तैयार करे।