प्रथम स्मरण - 22 मई
डॉ. शिव शर्मा - व्यंग्य के एक युग का स्मरण
अस्सी वर्ष की आयु में पिछले वर्ष 22 मई-2019 को डॉ. शिव शर्मा ने सबसे बिदा ली। आज शिव जी की प्रथम पुण्य तिथि है। राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रख्यात व्यंग्यकार, राजनीतिक विश्लेषक और हास्य व्यंग्य के आयोजन 'अखिल भारतीय टेपा सम्मलेनÓ के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में ख्याति प्राप्त डॉ. शिव शर्मा, अपनी मेहनत और काबलियत के दम पर शिवकुमार शर्मा से डॉ. शिव शर्मा बने। अपने करियर की शुरुआत डॉ. शिव शर्मा ने पत्रकारिता से की और वे राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार आजीवन रहे। उज्जैन में हास्य व्यंग्य के आयोजन अखिल भारतीय टेपा सम्मलेन का प्रारंभ वर्ष 1970 से आपने किया और आज टेपा सम्मलेन को पचास वर्ष पूरे हो गए हैं। टेपा सम्मेलन में देशभर के प्रख्यात साहित्यकार, पत्रकार, संपादक, कवि और अभिनेता शामिल होने आते रहे और टेपा सम्मलेन की लोकप्रियता बढ़ती गई।
प्रख्यात साहित्यकार कमलेश्वर ने जब नई कहानी आन्दोलन की शुरुआत की तो पत्रिका 'सारिकाÓ के लिए शिव जी ने कहानी भेजी। कमलेश्वर जी ने कहानी का प्रकाशन करते हुए शिव जी को, कहानीकार बनने के लिए प्रेरित किया। शिव जी के गुरु डॉ. प्रभात भट्टाचार्य जी भी शिव जी को, कहानी लेखन में आगे रखना चाहते थे, मगर शिव जी तो व्यंग्य के लिए बने थे। शिव जी बताते हैं कि प्रथम टेपा सम्मलेन की रपट जब उन्होंने 'टेपा हो गए टॉपÓ शीर्षक से धर्मयुग को भेजी तो वह छप गई और फिर धर्मयुग में उनके व्यंग्य प्रकाशित होने लगे। यह युग सम्पादक धर्मवीर भारती का युग था और उन्होंने शिव जी को व्यंग्य में ही बने रहने, लिखने को कहा और फिर शिव जी ने व्यंग्य को ही अपने लेखन का केंद्र बना लिया। डॉ. शिव शर्मा ने आजादी के बाद कई सिंहस्थ बहुत नजदीकी से देखे तथा बाबाओं के तम्बुओं का कोना-कोना आपने छान मारा और फिर एक व्यंग्य उपन्यास 'बजरंगाÓ लिखा जिसमें बजरंगा राजगढ़ का वही नौजवान था, जो 1956 में उज्जैन आया और अपनी आँखों देखी घटनाओं को उपन्यास बजरंगा में उतारा।
वर्ष 1970 के दशक से व्यंग्य-लेखन में सक्रिय डॉ. शिव शर्मा के व्यंग्य संग्रहों में, 'जब ईश्वर नंगा हो गयाÓ, 'चक्रम दरबारÓ, 'शिव शर्मा के चुने हुए व्यंग्यÓ, 'टेपा हो गए टापÓ, 'कालभैरव का खाताÓ, 'अपने-अपने भस्मासुरÓ, 'अध्यात्म का मार्केटÓ, 'दुम की दरकारÓ सम्मिलित हैं। आपका एक व्यंग्य एकांकी 'थाना आफतगंजÓ भी प्रकाशित हुआ है। डॉ. शिव शर्मा का पहला व्यंग्य उपन्यास-'बजरंगाÓ था और दूसरा व्यंग्य उपन्यास 'हुजूर-ए-आलाÓ (शिव शर्मा - रोमेश जोशी) 2016 में भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुआ जो काफी चर्चित हुआ और उपन्यास श्रेणी में वर्ष का बेस्ट सेलर उपन्यास घोषित हुआ। हुजुर ए आला उपन्यास उनके राजगढ़ रियासत के शानदार अतीत और फिर रियासत के राजा के परिवार के गर्दिश के दिनों की सत्य कथा है। त्वरित व्यंग्य लिखने में शिव जी का कोई सानी नहीं है और किसी समकालीन घटना पर जब सम्पादक उनसे रचना भेजने को कहते तो वह तुरंत लिखकर रवाना कर देते थे।
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा स्वतन्त्रता की 50वीं वर्षगाँठ पर 'जंगे आजादी में ग्वालियर-इन्दौरÓ विषय पर शोध-ग्रन्थ प्रकाशित हुआ। आपको 'माणिक वर्मा व्यंग्य सम्मानÓ, 'गख्खड़ व्यंग्य सम्मानÓ सहित कई सम्मान प्राप्त हुए।
प्रदेश शासन की संभागीय सतर्कता समिति, उज्जैन के सदस्य रहे। आपने सांदीपनी शैक्षणिक न्यास की स्थापना और सांदीपनी महाविद्यालय आज संचालित हो रहा है। आपने रूस, लन्दन, थाईलैंड सहित कई देशों की शैक्षणिक यात्राएं की।
उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खासियत रही उनकी बेबाकी। वे किसी से भी बात करने या मिलने में कतई हिचकिचाहट महसूस नहीं करते थे। बड़े से बड़े अधिकारियों से वे अत्यंत सहजता से बात कर लेते थे और अपनी वाकपटुता से माहौल को अपनी ओर करने में वे सिद्धहस्त थे। अपनी सही और स्पष्ट राय व्यक्त करने में वे कतई देर नहीं करते फिर भले ही सामने वाले को उनकी बात बुरी ही क्यों न लग जाए। उनका हर निर्णय सोचा, समझा और समय पर खरा उतरने वाला होता था। सदी में कुछ व्यक्तित्व अलग ही होते हैं जो एक बार ही जन्म लेते हैं। शिव जी, शिव जी थे और अब कोई दूसरा डॉ. शिव शर्मा भविष्य में धरती पर नहीं होगा। जिंदगी लंबी होने के बजाय महान होनी चाहिए। डॉ. शिव शर्मा जी की जिंदगी लंबी भी रही और महान भी। शिव जी के जाने से एक व्यंग्य के युग की समाप्ति सी हो गई। उन्हें नमन।
-डॉ. हरीशकुमार सिंह
प्रथम स्मरण - 22 मई डॉ. शिव शर्मा - व्यंग्य के एक युग का स्मरण