राष्ट्र निर्माण में बंधुत्व की आवश्यकता है : डॉ. प्रवेश कुमार

राष्ट्र निर्माण में बंधुत्व की आवश्यकता है : डॉ. प्रवेश कुमार
उज्जैन। डॉ. अम्बेडकर आधुनिक युग के महान् सामाजिक विचारक हैं। बाबा साहब ने सामाजिक जीवन के विविध क्षेत्रों, विशेष रूप से वित्त, अर्थव्यवस्था, राजनीति, तुलनात्मक धर्म, संविधान, सामाजिक संरचना और संस्कृति का गहन अध्ययन किया है। डॉ. अम्बेडकर ने अपने जीवन में कठोर सामाजिक व्यवस्थाओं को जिया है। इसलिए उनके चिन्तन, मनन और विचारों में प्रारंभ से ही समतामूलक समाज की स्थापना का सपना आकार ले रहा था। इसके लिए शिक्षा उनका पहला साधन बना। 'शिक्षित बनोÓ का सूत्र वाक्य।
उक्त विचार विक्रम विश्वविद्यालय की डॉ. अम्बेडकर पीठ द्वारा आयोजित डॉ. अम्बेडकर व्याख्यानमाला के प्रथम प्रबोधन में सेंटर फॉर कम्पेरेटिव्ह पॉलिटिक्स एण्ड पॉलीटिकल थ्योरी, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जे.एन.यू. के सहायक प्राध्यापक डॉ. प्रवेश कुमार ने मुख्य वक्तव्य देते हुए कहा।
डॉ. प्रवेश कुमार ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर सिर्फ संविधान विद्, शिक्षा शास्त्री, राजनीतिज्ञ, श्रमिकों या विशेष वर्ग के हिमायती ही नहीं, धर्म सुधारक और सामाजिक क्रांतिकारी थे। उनकी भारत निर्माण में अहम् भूमिका है। डॉ. अम्बेडकर ने भारत को आर.बी.आई., दामोदर घाटी परियोजना कृषि भूमि सुधार, भारतीय मुद्रा, वित्तीय विकेन्द्रीकरण महिलाओं के अधिकार जैसे कई महत्वपूर्ण विचार योजनाएँ दी हैं।
डॉ. प्रवेश कुमार ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर मानते थे कि सामाजिक व्यवस्था के परिवर्तन में किसी बड़े आंदोलन की आवश्यकता नहीं है। स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व से सामाजिक समानता और समरसता से सामाजिक व्यवस्था बदली जा सकती है। बहुत आवश्यक है 'बंधुत्वÓ स्थापित हो, अर्थात् स्वयं के लिए जो व्यवहार अपेक्षित है वही व्यवहार समाज से किया जाए। दरअसल वर्तमान में परस्पर समन्वय और समरसता कम हो गई है, जिससे विघटन हो गया और समाज बंट गए। जबकि डॉ. अम्बेडकर के लिए सामाजिक समानता ही राष्ट्र निर्माण का महत्वपूर्ण आधार है और राष्ट्र हित ही उनके लिए सर्वोपरि था। उन्होंने कहा था पहले और अंतिम रूप में मैं भारतीय हूँ। अत: सुदृढ़ राष्ट्र निर्माण के लिए 'बंधुत्वÓ भी बहुत आवश्यक है।
मुख्य अतिथि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नागेश्वर राव ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर के अध्ययन का विस्तार, उनकी दृष्टि की व्यापकता, विश्लेषण की गहनता, सकारात्मक सोच की तार्किकता व उनके कार्य करने की शैली और उनके द्वारा दिए गए मानवीय सुझाव सामाजिक समरसता का ही प्रतिनिधित्व करते हैं और एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने की प्रेरणा देते हैं, जो सामाजिक समानता पर आधारित हो। इस परिप्रेक्ष्य में आज विश्व में 'एक भारत श्रेष्ठ भारतÓ के रूप में निरूपित किया जा रहा है।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि महापुरुषों की विशेषता होती है कि वे अपने समय के साथ-साथ समय की आगे की भी सोचते हैं। भविष्य के लिए उनके विचार, कार्य, चिन्तन अनुकरणीय होते हैं। डॉ. अम्बेडकर ऐसे ही महापुरुष हैं। उनके विचार, कार्य और चिन्तन ने समाज-राष्ट्र के सर्वांगीण व सर्वतोमुख उन्नति के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर राष्ट्रोत्थान का कार्य किया है। प्रो. शर्मा ने डॉ. अम्बेडकर पीठ द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की सराहना करते हुए टीम को साधुवाद दिया।
राष्ट्रीय वेब व्याख्यान में रायपुर की प्रो. मनीषा महापात्र, जयपुर की डॉ. सुनीता सैनी, अमरावती के डॉ. विनायक मरकट, प्रो. प्रेमलता चुटैल, प्रो. जी.आर. गांगले, प्रो. राकेश ढंड, प्रो. आर.के. अहिरवार, डॉ. डी.डी. बेदिया, डॉ. निश्चल यादव, डॉ. स्वाति दुबे, प्रो. सोनल सिंह, डॉ. शेखर मैदमवार, डॉ. वीरेन्द्र चावरे विशेष रूप से उपस्थित थे। राष्ट्रीय वेब व्याख्यान सात राज्यों के सौ से अधिक विद्वान, प्रतिभागीगण व शोधार्थियों ने अपने विचार और प्रश्नों से वेब व्याख्यान को सफल बनाया।
राष्ट्रीय वेब व्याख्यान के तकनीकी समन्वयकद्वय जे.एन.यू. के भाषा, साहित्य संस्कृति अध्ययन केन्द्र के भाषाविद् डॉ. संदीप कुमार पाण्डेय, बरकत उल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल के फार्मेसी विभाग डॉ. जितेन्द्र मालवीय का विशेष एवं सराहनीय सहयोग से वेब व्याख्यान सम्पन्न हो सका।
अतिथियों का स्वागत पीठ का प्रगति ब्योरा व विषय प्रवर्तन पीठ के प्रभारी आचार्य व होस्ट डॉ. एस.के. मिश्रा ने किया। संचालन एवं आभार शोध अधिकारी डॉ. निवेदिता वर्मा ने माना।