जब से इस पृथ्वी का उदय हुआ है तब से लेकर आज तक सनातन संस्कृति का अस्तित्त्व निरंतर चला आ रहा है। यह शाश्वत संस्कृति संपूूर्ण विश्व को एक परिवार ही मानती है जिसका मूलमंत्र है ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’। इस संसार में मनुष्य को किस प्रकार से अपना जीवन यापन करना है उसके लिये हमारे श्रेष्ठ ऋषि-मुनियों के द्वारा वेदों, उपनिषदों जैसे महान ग्रंथों का निर्माण किया गया। वेदों को तो ईश्वर की वाणी भी कहा जाता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक, सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक मनुष्य को अपना जीवन किस प्रकार से व्यतीत करना है इन वेदों और उपनिषदों में सभी कुछ वर्णित है और इस प्रकार से वर्णित किया गया है जिससे मनुष्य प्रकृति के साथ अपना संतुलन बनाकर आसानी से अपना कर्म कर सकता है।
सनातन संस्कृति में पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं आदि को तुच्छ न समझते हुए उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। जैसे कि गाय में सभी देवी-देवताओं का वास मानकर उसे हमारे धर्म में माँ का स्थान दिया गया है, हाथी को श्री गणेश के रूप में, माता लक्ष्मी जी के रूप में, देवराज इंद्र के वाहन के रूप में पूजा जाता है। चूहे को श्री गणेश के वाहन के रूप में। बैल को भगवान शंकर के वाहन के रूप में आदि अनेक ऐसे जीवों के उदाहरण के है जिन्हें में ईश्वर या उनके वाहनों के रूप में पूजते है। वहीं पेड़ों की बात की जो पीपल देवता को भगवान श्री नारायण के रूप में, तुलसी को भगवान विष्णु के प्रिय पौधे के रूप में पूजते है। इससे होता ये है कि हम जिस पद्धति के माध्यम से इन पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और जीव-जंतुओं को पूजते हैं उससे इनके प्रति आस्था का भाव भी प्रकट होता है और आस्था का भाव प्रकट होने की वजह से हमारे द्वारा इनको किसी भी प्रकार का नुकसान और तकलीफ नहीं पहुंचाई जाती है जिससे प्रकृति का संतुलन निरंतर अच्छा भी चलता रहता है और हमारी आस्था भी बनी रहती है।
इस पृथ्वी पर सनातन संस्कृति का अस्तित्व पिछले लाखों वर्षों से चलता आ रहा है और इस अस्तित्व को मिटाने के लिये पिछले हजारों वर्षों से अनेक कु-विचारधाराओं के माध्यम से जी-तोड़कर प्रयास किये जा रहे हैं। ८०० वर्षों पूर्व जाये तो देखेंगे कि भारतवर्ष में किस तरह से मुगलों ने आक्रमण किया और सनातन संस्कृति को मिटाने तथा अपनी विचारधारा को स्थापित करने के लिये अनेक तरह के प्रयास किये गये, जिनमें प्रलोभन देना, विभिन्न तरह की यातनाएं देना, मंदिरों को तोड़कर उनकी आस्था को चोंट पहुंचाना आदि। इसके बाद अंग्रेजों के शासन काल में भी नजर डाले तो भारत की शिक्षा पद्धति, संस्कृति, संस्कार आदि में पाश्चात्य सभ्यता का मिश्रण करके इस संस्कृति को खत्म करने का भरपूर प्रयास किया गया, जिसके कु-परिणाम आज तक जारी है। इसके अतिरिक्त भारत में #कालमार्क्स की विचारधारा जिसे हम #वामपंथ और #कम्यूनिस्ट के नाम से भी जानते हैं, ने भी अपने पैर पसारे और इस संस्कृति पर अनेकों आघात किये, जो वर्तमान में भी जारी है।
अभी हाल की के पिछले कुछ से लगातार यह देखने में आ रहा है कि देश के विभिन्न स्थानों में जहां-जहां पर इन नीच विचारधाओं का प्रभाव और इनके मानने वालों की संख्या अधिक है वहां-वहां पर हिन्दूओं के द्वारा जिनके प्रति आस्था और श्रद्धा का भाव ज्यादा है उन पर अत्यधिक घात किया जा रहा है। अभी डेढ़ माह पूर्व महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं और उनके ड्रायवर की पुलिस की आंखों के सामने ही पीट-पीटकर हत्या कर दी गई, जिस जगह पर ये घटना हुई थी वहां पहले भी ऐसे नीच कर्म किये जा चुके थे और इस क्षेत्र में वामपंथी विचारधारा के मानने वालों का दबदबा है। इसी के साथ अभी दो दिन पूर्व देश के सबसे शिक्षित राज्य केरल में भी एक नीच कर्म किया गया, जिसमें किसी व्यक्ति के द्वारा एक गर्भवती हथनी को जो भूखी और भोजन के लिये इधर-उधर भटक रही थी, को खाने के लिये विस्फोटक पदार्थ से भरा हुआ पायनापल दे दिया गया। जब उस हथनी ने वो पायनापल खाया तो वो विस्फोटक पदार्थ उसके मुंह में फट गया जिससे वो हथनी बहुत तड़पने लग गयी और बिना किसी को नुकसान पहुंचाये एक जलाशय में अपने मुंह की जलन को मिटाने के लिये पानी पीने चली गई जिसमें जाकर उसने दम तोड़ दिया और पूरे देश को पता है केरल में किस विचारधारा की वर्तमान में सत्ता है और दबदबा है। केरल में ये कोई पहली घटना नहीं है इससे पहले भी वहां पर सरेआम हिन्दुओं की आस्था को चोंट पहुंचाने के लिये गाय को काटकर खाया जा चुका है और एक गर्भवती बिल्ली को फांसी पर लटकाने का मामला भी सामने आ चुका है।
इन कुधर्मियों को यह अच्छे से ज्ञात है कि इस देश में सीधे तौर पर तो हिन्दुओं पर वर्तमान में ना तो कोई दबाव बनाया जा सकता है और ना ही ताकत के बल पर निपटा जा सकता है इसलिये इस विचारधारा के द्वारा हिन्दुओं की जिनके प्रति आस्था और श्रद्धा है उन पर घात लगाकर हमले प्रारंभ कर दिये गये है जिससे हम सभी का मन अशांत और विचलित होता है लेकिन ऐसा कुकर्म करने वाले ये नरपिशाच यह भूल चुके हैं कि इनके द्वारा पिछले हजारों वर्षों से हमारा मनोबल तोड़ने और मिटाने के लिये जितने भी प्रयास किये गये हैं वे सभी के सभी असफल रहे हैं और प्रयास करने वाले नष्ट भी हो गये है।
हथनी नही सनातन पर घात