बारह बज गई फिर भी दफ्तरी दफ्तर से नदारद
कोरोना का नाम, कामचोरी बन गया काम, आवेदक झोले खा रहा, बाबू मजे मार रहा
उज्जैन। सुबह १०.३० बजे लगने वाले कार्यालय १२ बजे तक संचालित नहीं होते हैं। शासकीय कार्यालय हैं। शासन का काम है। १२ बज जाते हैं, फिर भी दफ्तरी दफ्तर से नदारद हैं। वाह रे बाबूजी और वाह रे साब। एक नहीं, ऐसे अनेक कार्यालयों के हाल हैं। उदाहरण है आदिमजाति कल्याण विभाग के जिला कार्यालय का।
राजस्व कॉलोनी शासकीय अधिकारियों के बंगले के पास लगने वाला आदिम जाति कल्याण विभाग का जिला कार्यालय भी मनमर्जी से चलता है। कोरोना का नाम है और कामचोरी काम बन गया है। इस कार्यालय में १२ बजे तक बाबूजी के अते-पते नहीं रहते हैं। आवेदक को अंदर घुसने की अनुमति नहीं है। बनिस्बत घुस भी गया तो ऊपर से नीचे झोले खाते रहता है। कार्यालय का प्यून ही उसे टरकाता है। आवेदक को डेढ़ घंटे इंतजार के बाद आवेदन देखकर पहले ऊपर जाने का कहा जाता है फिर नीचे जाने का। बाद में १२ बजे आए बाबूजी, जिन्होंने ऊपर जाने का कहा था, वे ही आवेदन लेकर प्राप्ति देते हैं। आवेदक के साइन और सील की मांग करने पर बाबूजी कुर्सी से हिलने को तैयार नहीं। गजानन की तरह जमे, वहीं थमे के हाल बताते हुए बाबूजी आवेदक को ही कह देते हैं, बाहर सील रखी है, वहीं से लगा लो।
ऐसा ही एक वाकया बुधवार को आदिम जाति कल्याण विभाग के जिला कार्यालय में देखने को मिला। चंचलप्रभा महिला मंडल की अध्यक्ष चंचल श्रीवास्तव एक आवेदन के साथ ११.१५ बजे आदिम जाति कल्याण विभाग के जिला कार्यालय पहुंचे। यहाँ तल स्थल पर एक बाबू से जब आवेदन किसे देना है के बारे में पूछा गया तो उन्होंने दूसरी मंजिल पर भेज दिया। दूसरी मंजिल पर नंदकिशोर चिरोलिया को आवेदन देने का कहा गया। लेकिन श्री चिरोलिया उस समय अपनी कुर्सी से नदारद मिले। तब उन्हें फोन कर आने की जानकारी ली गई तो ५-१० मिनट का कहा गया। लेकिन फिर भी ११.४५ बजे तक उक्त बाबू नदारद रहे। बाद में आवेदक दूसरे कार्य के लिए चला गया। इसके बाद पुन: आवेदक के उक्त कार्यालय में १.३० बजे जाने पर उक्त कार्यालय आवेदन देने पहुंचे। तब प्रथम तल पर श्री चिरोलिया मिले। उन्होंने आवेदन को फौरी तौर पर देखा और दो शब्द कहे, नीचे दे दो। आवेदक पुन: तल स्थल पर उसी बाबू को आवेदन पहुंचा, जिसने ऊपर देने का कहा था। कार्यालयों में इस तरह के हाल से यह तय किया जा सकता है कि किस तरह से आवेदक को परेशान किया जाता है और उसे हताश कर लौटाने की कला का इस्तेमाल किया जाता है। यह लालफीताशाही का एक उदाहरण है। सील लगाने की मांग करने पर भी बाबूजी ने आवेदक को आदेश देकर कह दिया कि सील खिड़की पर से खुद लगा लो। सवाल तो यह है कि इस देश में शासकीय कर्मचारी जनता का सेवक है या जनता उसकी सेवक? इस कार्यालय में संविधान की परिभाषा को ही बदलकर रख दिया है।
चंचलप्रभा महिला मंडल की अध्यक्ष चंचल श्रीवास्तव ने कलेक्टर से कार्यालयों में समय सेवा के अनुसार कार्य और उपस्थिति सख्ती के साथ लागू करवाने, महिलाओं से सम्मानजनक व्यवहार करवाने की व्यवस्था तत्काल किए जाने की माँग की है। उन्होंने कहा कि कार्यालयों में लगे कैमरे आगन्तुकों के लिए लगाए गए हैं, जबकि आवश्यकता कार्यालय के अंदर हो रहे इस तरह के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लगाए जाना चाहिए।
बारह बज गई फिर भी दफ्तरी दफ्तर से नदारद कोरोना का नाम, कामचोरी बन गया काम, आवेदक झोले खा रहा, बाबू मजे मार रहा