साँपों की पूजा या क्रूरता का पर्व?
श्रावण शुक्ल का वह दिन (जुलाई/अगस्त) जब नागपंचमी आती है व नागदेवता की हर घर पूजा होती है। सपेरे सुबह से ही सर्पों का प्रदर्शन करते हैं, उनकी पूजा करवाते हैं और इसके बदले उन्हें पैसा व कपड़े मिलते हैं। गृहिणियां कच्चा दूध लेकर आती है व सपेरा उन सर्पों के मुंह को जबर्दस्ती खोलकर दूध चढ़ाने/पिलाने का कहता है। इसके उपरान्त उस सर्प की हल्दी, कुंकु और गुलाल से पूजा होती है व उसके पूरे मुंह (आँख, नाक, जबड़े) को इन सभी तत्वों से भर दिया जाता है। और इसी तरह की पूजा/क्रूरता उस साँप को नागपंचमी के दिन हर घर झेलनी पड़ती है।
सपेरे नागपंचमी के दो महीने पूर्व से ही इन साँपों को पकड़ने के लिए जमीन में गड्ढा खोदकर बनाते हैं जिससे यह साँप उस गड्ढे में गिर जाते हैं व बाद में पकड़कर इन सर्पों के दाँत (विषदंत), जहर की पोटली (विषग्रंथी) निकाल दी जाती है। नागपंचमी तक इन सर्पों को भूखा एवं प्यासा रखा जाता है, जिससे यह अत्यंत कमजोर एवं अधमरे हो जाते हैं और यह सिर्फ इसलिए किया जाता है, ताकि श्रद्धालु जब पूजा करे तो उन्हें किसी प्रकार की परेशानी न आए।
वन्यजीव विशेषज्ञ विवेक पगारे के अनुसार : हर साल नागपंचमी पर आस्था के नाम पर या यह कहे कि जनजागरूकता के अभाव में हजारों की संख्या में साँपों को मार दिया जाता है व जो कुछ अगर बच भी जाते हैं तो वह स्थायी तौर पर बहुत कष्टदायी जीवन जीते हैं व आने वाले दो-तीन महीनों में उनकी भी मृत्यु हो जाती है। इनकी मृत्यु का प्रमुख कारण श्रद्धालुओं द्वारा पिलाये गए दूध व हल्दी-कुंकु चढ़ाने से होती है। साँप क्योंकि सरिसृप है इसलिए ना उसमें दूध देने की और ना ही पचाने की क्षमता है एवं जिस कारण जैसे ही आप उसे दूध पिलाते हैं, वह दूध सीधे उसके फेफड़ों में जाकर चोक हो जाता है, जिससे उसे निमोनिया व फेफड़ों में भारी संक्रमण हो जाता है व जो गुलाल उस पर चढ़ाते हैं उससे सर्प की नाक बंद हो जाती है और श्वास नली चोक हो जाती है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है।
दूसरे वन्यप्राणियों की तरह ही सर्पों का प्रदर्शन, परिवहन या किसी भी तरह से प्रताड़ित करना वन्यप्राणी अधिनियम १९७२ के तहत संगीन जुर्म है व जागरूकता के अभाव में पढ़े-लिखे लोग भी इस तथ्य को नहीं देख पाते कि उनके द्वारा सर्प के पूजन के दौरान उस सर्प को कितना कष्ट और पीड़ा होती है।
नागपंचमी पर क्या ना करें-
१. साँप पूरी तरह मांसाहारी है, उसे दूध या अन्य कोई द्रव्य ना पिलाएं।
२. साँपों पर हल्दी, कुंकु या गुलाल ना चढ़ाएं, ऐसा करने पर उनकी त्वचा पर संक्रमण और इस केमिकल के कारण इनकी त्वचा छिल/फट सकती है।
३. अपनी आस्था, जिज्ञासा या मनोरंजन के लिए जीवित सर्प की पूजा को बढ़ावा ना दें।
नागपंचमी पर क्या करें-
१. शिव मंदिर या नाग मंदिर में जाकर शिवलिंग या नाग प्रतिमा के ऊपर ही दूध या जल/हल्दी-कुंकू चढ़ाएं।
२. अगर कोई सपेरा नागपंचमी या अन्य कोई भी दिन जिंदा सांप का प्रदर्शन, परिवहन या पूजा करवाए तो उसकी सूचना तत्काल वन विभाग को दें।
संपर्क सूत्र (वन विभाग)
विवेक पगारे
वन्य जीव विशेषज्ञ
श्रावण शुक्ल का वह दिन (जुलाई/अगस्त) जब नागपंचमी आती है व नागदेवता की हर घर पूजा होती है। सपेरे सुबह से ही सर्पों का प्रदर्शन करते हैं, उनकी पूजा करवाते हैं और इसके बदले उन्हें पैसा व कपड़े मिलते हैं। गृहिणियां कच्चा दूध लेकर आती है व सपेरा उन सर्पों के मुंह को जबर्दस्ती खोलकर दूध चढ़ाने/पिलाने का कहता है। इसके उपरान्त उस सर्प की हल्दी, कुंकु और गुलाल से पूजा होती है व उसके पूरे मुंह (आँख, नाक, जबड़े) को इन सभी तत्वों से भर दिया जाता है। और इसी तरह की पूजा/क्रूरता उस साँप को नागपंचमी के दिन हर घर झेलनी पड़ती है।
सपेरे नागपंचमी के दो महीने पूर्व से ही इन साँपों को पकड़ने के लिए जमीन में गड्ढा खोदकर बनाते हैं जिससे यह साँप उस गड्ढे में गिर जाते हैं व बाद में पकड़कर इन सर्पों के दाँत (विषदंत), जहर की पोटली (विषग्रंथी) निकाल दी जाती है। नागपंचमी तक इन सर्पों को भूखा एवं प्यासा रखा जाता है, जिससे यह अत्यंत कमजोर एवं अधमरे हो जाते हैं और यह सिर्फ इसलिए किया जाता है, ताकि श्रद्धालु जब पूजा करे तो उन्हें किसी प्रकार की परेशानी न आए।
वन्यजीव विशेषज्ञ विवेक पगारे के अनुसार : हर साल नागपंचमी पर आस्था के नाम पर या यह कहे कि जनजागरूकता के अभाव में हजारों की संख्या में साँपों को मार दिया जाता है व जो कुछ अगर बच भी जाते हैं तो वह स्थायी तौर पर बहुत कष्टदायी जीवन जीते हैं व आने वाले दो-तीन महीनों में उनकी भी मृत्यु हो जाती है। इनकी मृत्यु का प्रमुख कारण श्रद्धालुओं द्वारा पिलाये गए दूध व हल्दी-कुंकु चढ़ाने से होती है। साँप क्योंकि सरिसृप है इसलिए ना उसमें दूध देने की और ना ही पचाने की क्षमता है एवं जिस कारण जैसे ही आप उसे दूध पिलाते हैं, वह दूध सीधे उसके फेफड़ों में जाकर चोक हो जाता है, जिससे उसे निमोनिया व फेफड़ों में भारी संक्रमण हो जाता है व जो गुलाल उस पर चढ़ाते हैं उससे सर्प की नाक बंद हो जाती है और श्वास नली चोक हो जाती है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है।
दूसरे वन्यप्राणियों की तरह ही सर्पों का प्रदर्शन, परिवहन या किसी भी तरह से प्रताड़ित करना वन्यप्राणी अधिनियम १९७२ के तहत संगीन जुर्म है व जागरूकता के अभाव में पढ़े-लिखे लोग भी इस तथ्य को नहीं देख पाते कि उनके द्वारा सर्प के पूजन के दौरान उस सर्प को कितना कष्ट और पीड़ा होती है।
नागपंचमी पर क्या ना करें-
१. साँप पूरी तरह मांसाहारी है, उसे दूध या अन्य कोई द्रव्य ना पिलाएं।
२. साँपों पर हल्दी, कुंकु या गुलाल ना चढ़ाएं, ऐसा करने पर उनकी त्वचा पर संक्रमण और इस केमिकल के कारण इनकी त्वचा छिल/फट सकती है।
३. अपनी आस्था, जिज्ञासा या मनोरंजन के लिए जीवित सर्प की पूजा को बढ़ावा ना दें।
नागपंचमी पर क्या करें-
१. शिव मंदिर या नाग मंदिर में जाकर शिवलिंग या नाग प्रतिमा के ऊपर ही दूध या जल/हल्दी-कुंकू चढ़ाएं।
२. अगर कोई सपेरा नागपंचमी या अन्य कोई भी दिन जिंदा सांप का प्रदर्शन, परिवहन या पूजा करवाए तो उसकी सूचना तत्काल वन विभाग को दें।
संपर्क सूत्र (वन विभाग)
विवेक पगारे
वन्य जीव विशेषज्ञ