नक्कारखाने में उम्मीदों को जीती कविताएं : प्रो. बी.एल. आच्छा
सरल काव्यांजलि की ऑनलाइन पुस्तक समीक्षा गोष्ठी सम्पन्न
उज्जैन। 'श्री सन्तोष सुपेकर के तीसरे काव्य संग्रह 'नक्कारखाने की उम्मीदेंÓ की कविताएं यथार्थ और आशा के बीच नक्कारखाने में उम्मीदों को जीतीं हैं। ये कविताएं अपने रोजमर्रा के परिदृश्यों में केवल आत्मवृत्त ही नहीं बनातीं बल्कि चिड़ियों के दर्द से लेकर बाज़ार की दुनिया तक और स्मृति से लेकर तकनीक के आधुनिक छोर तक ले जातीं हैं।Ó ये विचार चेन्नई के प्रो.बी.एल. आच्छा ने सरल काव्यांजलि संस्था, उज्जैन द्वारा आयोजित ऑनलाइन समीक्षा गोष्ठी में व्यक्त किये। जानकारी देते हुए संस्था के श्री संजय जौहरी ने बताया कि वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर पुष्पा चौरसिया ने इन कविताओं को सकारात्मक सोच का आव्हान करती निश्छल प्रेम की रचनाएं बताया। उन्होंने कहा कि सुपेकर की कविताओं में मानवता के स्वर औदात्य के साथ अभिव्यक्त हुए हैं। माधव कॉलेज के प्राधापक, वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर रफीक नागौरी ने इस संग्रह की रचनाओं को विसंगतियों की आवाज बुलंद करने वाली बताते हुए कहा कि सुपेकर का लघुकथाकार इन कविताओं पर हावी है। कई रचनाओं में रूपकों का प्रयोग नहीं है जो संग्रह की कमज़ोरी है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर वन्दना गुप्ता के अनुसार कवि हृदय की संवेदनाएं इनमें मुखरित हुई हैं जिन्हें पढ़ते हुए पाठक की अनुभूतियां जीवंत होकर उसे उनके परिवेश से गुजरने का अहसास दिलाती हैं। वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती ज्योति जैन (इंदौर) ने कहा कि सुपेकर जी की कविताओं की खासियत है कि वे उनकी लघुकथाओं की तरह पैनी हैं व अपनी विशिष्ट मारक क्षमता के साथ पाठक को झकझोरतीं हैं। उनकी छोटी-छोटी कविताएं महत्वपूर्ण दस्तावेज बन गई हैं। वरिष्ठ साहित्यकार श्री राजेन्द्र देवधरे 'दर्पणÓ ने कहा कि कवि का आहत मन, शीर्षक कविता 'नक्कारखाने की उम्मीदेंÓ में दिखाई देता है। कवि, संग्रह में उपयोग किये अंग्रेजी शब्दों का अर्थ भी पाठकों को बताते चलते तो ठीक रहता। 'व्यथा-ए-विकासÓ कविता का शीर्षक 'व्यथा एक विकास कीÓ होता तो ज्यादा उचित होता। श्री नितिन पोल ने कहा कि ये कविताएं छंद और यमक से मुक्त होकर गद्य में होने से पाठक पर सीधा प्रभाव छोड़तीं हैं। संग्रह में सामाजिक विषमताओं पर प्रहार के साथ-साथ पर्यावरण, सामाजिक दायित्व पर भी प्रभावी ढंग से कलम चलाई गई है। वरिष्ठ लेखक श्री दिलीप जैन ने कहा कि सुपेकर जी के दिल में व्यवस्था में विसंगतियों के खिलाफ एक ज्वाला प्रज्वलित है, जो कविता बनकर कागज़ पर उतरी है। उनकी भाषा दुरूहता से मुक्त होकर सहज व बोधगम्य है। आभासी अतिथि स्वागत श्री विजयसिंह गहलोत 'साकित उज्जैनीÓ एवं श्री वीरेंद्रकुमार गुप्ता ने किया। आभार संस्था सचिव डॉक्टर संजय नागर ने माना।
सरल काव्यांजलि की ऑनलाइन पुस्तक समीक्षा गोष्ठी सम्पन्न
उज्जैन। 'श्री सन्तोष सुपेकर के तीसरे काव्य संग्रह 'नक्कारखाने की उम्मीदेंÓ की कविताएं यथार्थ और आशा के बीच नक्कारखाने में उम्मीदों को जीतीं हैं। ये कविताएं अपने रोजमर्रा के परिदृश्यों में केवल आत्मवृत्त ही नहीं बनातीं बल्कि चिड़ियों के दर्द से लेकर बाज़ार की दुनिया तक और स्मृति से लेकर तकनीक के आधुनिक छोर तक ले जातीं हैं।Ó ये विचार चेन्नई के प्रो.बी.एल. आच्छा ने सरल काव्यांजलि संस्था, उज्जैन द्वारा आयोजित ऑनलाइन समीक्षा गोष्ठी में व्यक्त किये। जानकारी देते हुए संस्था के श्री संजय जौहरी ने बताया कि वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर पुष्पा चौरसिया ने इन कविताओं को सकारात्मक सोच का आव्हान करती निश्छल प्रेम की रचनाएं बताया। उन्होंने कहा कि सुपेकर की कविताओं में मानवता के स्वर औदात्य के साथ अभिव्यक्त हुए हैं। माधव कॉलेज के प्राधापक, वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर रफीक नागौरी ने इस संग्रह की रचनाओं को विसंगतियों की आवाज बुलंद करने वाली बताते हुए कहा कि सुपेकर का लघुकथाकार इन कविताओं पर हावी है। कई रचनाओं में रूपकों का प्रयोग नहीं है जो संग्रह की कमज़ोरी है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर वन्दना गुप्ता के अनुसार कवि हृदय की संवेदनाएं इनमें मुखरित हुई हैं जिन्हें पढ़ते हुए पाठक की अनुभूतियां जीवंत होकर उसे उनके परिवेश से गुजरने का अहसास दिलाती हैं। वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती ज्योति जैन (इंदौर) ने कहा कि सुपेकर जी की कविताओं की खासियत है कि वे उनकी लघुकथाओं की तरह पैनी हैं व अपनी विशिष्ट मारक क्षमता के साथ पाठक को झकझोरतीं हैं। उनकी छोटी-छोटी कविताएं महत्वपूर्ण दस्तावेज बन गई हैं। वरिष्ठ साहित्यकार श्री राजेन्द्र देवधरे 'दर्पणÓ ने कहा कि कवि का आहत मन, शीर्षक कविता 'नक्कारखाने की उम्मीदेंÓ में दिखाई देता है। कवि, संग्रह में उपयोग किये अंग्रेजी शब्दों का अर्थ भी पाठकों को बताते चलते तो ठीक रहता। 'व्यथा-ए-विकासÓ कविता का शीर्षक 'व्यथा एक विकास कीÓ होता तो ज्यादा उचित होता। श्री नितिन पोल ने कहा कि ये कविताएं छंद और यमक से मुक्त होकर गद्य में होने से पाठक पर सीधा प्रभाव छोड़तीं हैं। संग्रह में सामाजिक विषमताओं पर प्रहार के साथ-साथ पर्यावरण, सामाजिक दायित्व पर भी प्रभावी ढंग से कलम चलाई गई है। वरिष्ठ लेखक श्री दिलीप जैन ने कहा कि सुपेकर जी के दिल में व्यवस्था में विसंगतियों के खिलाफ एक ज्वाला प्रज्वलित है, जो कविता बनकर कागज़ पर उतरी है। उनकी भाषा दुरूहता से मुक्त होकर सहज व बोधगम्य है। आभासी अतिथि स्वागत श्री विजयसिंह गहलोत 'साकित उज्जैनीÓ एवं श्री वीरेंद्रकुमार गुप्ता ने किया। आभार संस्था सचिव डॉक्टर संजय नागर ने माना।