राष्ट्रीय चेतना का जन-जन व्यापी प्रसार संस्कृतिकर्मियों का दायित्व है – प्रो शर्मा  नार्वे से गूंजा 'हमारा स्वर्ग सा भारत' गीत अंतरराष्ट्रीय वेब काव्य गोष्ठी में अंतरराष्ट्रीय वेब काव्य गोष्ठी में जुटे देश विदेश के कवि गण 
राष्ट्रीय चेतना का जन-जन व्यापी प्रसार संस्कृतिकर्मियों का दायित्व है – प्रो शर्मा 

 

नार्वे से गूंजा 'हमारा स्वर्ग सा भारत' गीत अंतरराष्ट्रीय वेब काव्य गोष्ठी में

 

अंतरराष्ट्रीय वेब काव्य गोष्ठी में जुटे देश विदेश के कवि गण 

 

उज्जैन। स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें स्केंडनेवियन देशों के साथ भारत के कई राज्यों के कवियों, विद्वानों और संस्कृतिकर्मियों ने भाग लिया। आयोजन में स्वाधीनता आंदोलन के विभिन्न पक्षों से जुडी रचनाओं के साथ नव निर्माण के गीत भी गूँजे। नार्वे के सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' द्वारा सम्पादित बहुभाषी पत्रिका  स्पाइल-दर्पण और वैश्विका द्वारा आयोजित इस काव्य गोष्ठी में रचनाकारों ने राष्ट्र प्रेम से जुडी सरस रचनाओं का पाठ किया। 

 

वेब काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए  लेखक एवं समालोचक  प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि परस्पर प्रेम, बन्धुत्व  और आत्म त्याग के बिना राष्ट्रीयता का निर्माण संभव नहीं है। आजादी हमारे अमर सेनानियों का अमूल्य उपहार है। बलिदानियों को याद करते हुए देशवासी आजादी के महत्त्व को समझें। राष्ट्रीय चेतना का जन-जन व्यापी प्रसार संस्कृतिकर्मियों का दायित्व है। नॉर्वे से प्रकाशित स्पाइल दर्पण और वैश्विका पत्रिका इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।

 

प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल, ओस्लो, नॉर्वे ने अपनी रचना 'हमारा स्वर्ग सा भारत' का पाठ किया। इस गीत की पंक्तियाँ थीं,  "वतन से दूर रहकर भी, हमारे ह्रदय में बसता, हमारी संस्कृति श्रद्धा, हमारा स्वर्ग सा भारत। प्रेम के धागे पिरोकर, जिसे जयमाल पहनाते, वही मेरा सुखद मंदिर, हमारे प्राण सा भारत।"

 

सुरेश पांडे, स्टॉकहोम, स्वीडन ने अपनी रचना में अंचल की यादों को बुना।

 

प्रो निर्मला एस मौर्य, चेन्नई ने कविता में पढ़ा, 'एक वायरस ने मचा रखी तबाही दुनिया में, चारों तरफ सन्नाटे का शोर है। कोई कानों में फुसफुसा कर कह जाता है, डरना मत भारतवासी। ये कोरोना मरेगा अपनी मौत। एक दिन-एक दिन और भारत फिर से बन जायेगा। तितली सा मनोरम।'

 

डॉ मंजू मिश्र ने कहा, है रश्क जहाँ, मेरे एहले वतन, शोभे हिमालय का ताज, और धानी पैरहन। है सूरज से बिंदिया और दरिया की करधन। सागर पखारे है जिसके चरण, रश्क ऐ जहाँ अहले वतन।

 

छविन्दर कुमार ने अपनी कविता में कहा, 'तिरंगा मेरी जान है, मिल जुल कर रहना मेरे दोस्त। यही मेरा तीरथ, यही मेरा धाम है।

 

संगोष्ठी में सम्मिलित कवियों में शिवमंगल सिंह मंगल, डॉ. ऋचा पाण्डेय (लखनऊ विश्वविद्यालय), डॉ रज़िया (चेन्नई), डॉ. लहरी राम मीणा (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय) आदि मुख्य थे।