इक्कीसवीं सदी की जरूरतों के अनुरूप है नई शिक्षा नीति  नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएं विषय पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न
इक्कीसवीं सदी की जरूरतों के अनुरूप है नई शिक्षा नीति 

 

नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएं विषय पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न

 

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएं विषय पर अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् श्री भरत व्यास, डॉ रीता सिंह, हिमाचल प्रदेश एवं श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई थीं। अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। संगोष्ठी की रूपरेखा संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।

 

इस अवसर पर संबोधित करते हुए श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि भारत की नई शिक्षा नीति 2020 की अवधारणा अत्यंत सार्थक है। इसके क्रियान्वयन में माता-पिता और स्थानीय लोगों को जोड़ा जाना चाहिए। तीन वर्ष के बच्चों को पूर्व बेसिक शिक्षा में सम्मिलित करने की सरकारी तैयारी एक सी और सभी के लिए जरूरी और संभव हो। कोई भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित न हो, इसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। जरूरी है कि इसमें सभी समुदायों, स्वयंसेवी एवं शैक्षिक संस्थानों को जोड़ा जाए। तभी सरकार अपना लक्ष्य जल्द प्राप्त कर लेगी। इसके साथ ही आधारभूत ढांचा बेहतर किया जाना चाहिए। 

 

प्रमुख वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि शिक्षा एक अविराम प्रक्रिया है, उसे समय, जरूरत और क्षेत्र के अनुरूप अद्यतन होते रहना चाहिए। नई शिक्षा नीति व्यापक परिवर्तन के साथ हमकदमी कर रही है। यह नीति  इक्कीसवीं सदी की  आवश्यकताओं के अनुरूप है। विद्यार्थी तेजी से परिवर्तनशील स्थितियों के मध्य सीखें ही नहीं, सतत सीखते रहने की कला को भी जानें, नई शिक्षा नीति में इस बात पर विशेष बल दिया गया है। इसके माध्यम से विद्यार्थियों में चरित्र निर्माण, तार्किकता और व्यावसायिक कौशल के साथ अंतरानुशासनिक क्षमता का विकास होगा। यह जरूरी है कि शिक्षण प्रणाली शिक्षार्थी केंद्रित हो। साथ ही उसमें लचीलापन हो तथा समग्रता और समन्वित रूप से देखने - समझने में सक्षम बनाने वाली हो। नई शिक्षा नीति में इन बातों का ध्यान रखा गया है। नई शिक्षा नीति स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक आवश्यकताओं को दृष्टि में रखकर बनाई गई है। इसका सफल क्रियान्वयन शिक्षा से जुड़े हुए सभी पक्षों का दायित्व है।

 

विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् श्री भरत व्यास ने कहा कि विद्या वह है, जो बंधनों से मुक्त कर सके। वर्तमान में स्मृति आधारित शिक्षा पद्धति अस्तित्व में है। नई शिक्षा नीति इसमें परिवर्तन लाने के लिए महत्त्वपूर्ण उपाय कर रही है, जहां क्रिया आधारित शिक्षण पर बल दिया गया है। हमारी ज्ञान परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। मौलिक चिंतन के लिए जरूरी है कि मातृभाषा के माध्यम से ज्ञान प्राप्त हो। इसके साथ ही शिक्षा में भारतीयता का तत्त्व हो और व्यावसायिक कौशल का भी विकास हो। इन सभी दृष्टियों से नई शिक्षा नीति में विशेष प्रावधान किए गए हैं।

 

अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कक्षाओं और पाठ्यक्रम की सरंचना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं। इसमें कौशल विकास को पर्याप्त महत्त्व मिला है। शैक्षिक संस्थाओं की फीस सरकार द्वारा नियंत्रित होगी। शिक्षा एक बड़ी संघटना है। हमारे जीडीपी का छह प्रतिशत व्यय शिक्षा के लिए किया जाएगा, जिससे शैक्षिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार होंगे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नामकरण शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है, जो स्वागत योग्य है।

 

विशिष्ट अतिथि डॉ रीता सिंह, हिमाचल प्रदेश ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कौशल विकास पर बल दिया गया है। यह नीति व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ आई है। इसमें मातृभाषा के महत्त्व को स्वीकार किया गया है।

 

प्रारंभ में संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा कि ब्रिटिश शासकों ने गुरुकुल पद्धति की शिक्षा पर प्रहार किया था, जिससे हमारा मौलिक चिंतन नष्ट होने लगा था। नई शिक्षा नीति भारतीय चिंतन को केंद्र में रखकर तैयार की गई है।

 

संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि  श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई एवं डॉ लता जोशी, मुम्बई ने भी संबोधित किया। आयोजन में डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ कौशल किशोर पांडेय, इंदौर, डॉ मुक्ता कौशिक, डॉ रश्मि चौबे, श्रीमती शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ भरत शेनेकर, पुणे, डॉ. रोहिणी डकारे, अहमदनगर, ममता झा, मुम्बई, श्री दिनेश परमार, पुष्पा गरोठिया, डॉ अशोक सिंह, डॉ श्वेता पंड्या, कमल भूरिया, विजय शर्मा आदि सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभागी उपस्थित थे।

 

संगोष्ठी का संचालन रागिनी शर्मा, इंदौर ने किया। आभार साहित्यकार डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने माना।