जलवा....जय कौशल की कलम से.....

*✍जलवा🏹*    
                                                                   *"तड़तड़ी"* 


*"मन की बात"......*
                                                                सभी जल्वेदारों को जलवा प्रणाम।🙏      आज सुबह से मन थोड़ा व्यथित सा हो गया है जब बिस्तर छोड़ते ही एक विश्व प्रसिद्ध अख़बार पढ़ा। मन के व्यथित होने का कोई खबर नहीं थी दरअसल जिम्मेदारों की गलती कहें या फिर इसे बदलाव का सबब माने लेकिन विश्व के महान लोकतंत्र के जिम्मेदारों की कारगुजारी कहें कि इस देश के एक महान व्यक्तित्व के अवतरण दिवस को ये कर्णधार भूला बैठे अब ये माया(एड , धन) की लालसा रही या कुछ और कारण रहा । लेकिन जो भी हो पर एक ऐसी शख्शियत को भूला देना चिंतनीय और निंदनीय है । यहाँ ये भी गौर तलब है कि राष्ट्रपिता के जन्मदिन को तो सरकार ने याद रखा, लेकिन ईमानदारी और स्वच्छ छवि के राष्ट्र नेता को नदारद ही कर दिया।    


*"क्यों आख़िर क्यों"*


   अब आप सुधिपाठक सोच रहे होंगे कि आख़िर ऐसा क्या हुआ और क्यों हुआ? दरअसल 2 अक्टूबर को हमारे *"राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी"* की जयंती है और इस अवसर पर केंद्र शासित और प्रदेश शासित पार्टीयों ने कई आयोजन किए हैं। लेकिन इसी दिन एक और ऐसी शख़्सियत का भी जन्मदिन है जिनका इस देश की स्वतंत्रता के लिए बहोत बड़ा योगदान था और स्वत्रंता के बाद भी अमूल्य योगदान रहा। जिनकी मौत भी आज तक रहस्य ही बनी हुई है। ऐसी महान हस्ती हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री *"लालबहादुर शास्त्री"* थे। जिन्हें शायद भुलाने की कोशिश की जा रही है। शास्त्री जी को उस विश्व प्रसिद्ध अख़बार ने कुछ इंच जगह भी नहीं दी और केंद्र सरकार के विज्ञापनों और आयोजनों से भी उन्हें दूर रखा गया। आख़िर क्या वजह है इस खुराफ़ात की...? 
                                               *"एक सवाल और निरुत्तर "....*   


     दरअसल मैं आज जब सो कर उठा तो मेरे पुत्र प्रियांश जो महज 8 साल का है और तिसरी कक्षा का छात्र है उसने इस महान अख़बार और इसमें छपे केन्द्र सरकार और हमारी राज्य सरकारों के सरकारी विज्ञापनों को बड़ी बारीकी से देखने के बाद मुझसे एक मासूम सा सवाल पूछ लिया... *"पापा दादी तो कल कह रही थी कि बापू और शास्त्री जी का स्मरण दिवस है आज, लेकिन यहाँ शास्त्री जी का तो कहीं उल्लेख ही नहीं है".....??* उसके इस प्रश्न के बाद मैंने इस महान अख़बार को पूरा छान डाला, लेकिन मुझे निराशा ही हाथ लगी और ताज़्जुब भी हुआ। हालांकि अख़बार का तो समझ आता है कि विज्ञापनों की हवस के कारण उसकी मज़बूरी रही कि वो एक महान पूर्व प्रधानमंत्री का फोटो तो ठीक कहीं नाम भी नहीं छाप पाया , लेकिन इस देश की केंद्र और राज्य सरकारों के जिम्मेदारों को क्या कहें ? वो भी ऐसी हिमाक़त कर बैठे ? आख़िर कहाँ जा रहा हमारा देश और इसका इतिहास।


  *कहाँ गई वो प्रेरक कहानियां और किस्से".....*                                       मुझे आज भी याद है कि इस शहर की दो शख़्सियत *"श्री कृष्ण मंगल सिंह कुलश्रेष्ठ और श्रीआनन्द मंगल सिंह कुलश्रेठ"* जो स्कूल स्कूल जा कर हमारे इतिहास और स्वंत्रता की कहानियां बच्चों को सुनाते थे और बच्चों का ज्ञान वर्धन करते थे। जिससे बच्चों को किताबी ज्ञान से बाहर भी रोचक किस्से कहानियां सुनने और उन्हें जज्ब करने की प्रेरणा मिलती थी। लेकिन अब ये प्रयास भी विलुप्त हो गया है। लेकिन कुलश्रेष्ठ बंधुओं के इसी तरह के प्रयास पुनः जीवंत होने की तमन्ना कर रहा है आज श्री कुलश्रेष्ठ जी स्वास्थ कारणों से ये करने में असमर्थ हैं लेकिन किसी को तो उनके इस प्रयास को आगे लाना होगा। 
      
*"छोटे कद के बड़े किस्से"....*             हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री और अज़ीम शख़्सियत लाल बहादुर शास्त्री का कद छोटा था लेकिन उनके कर्म ने उन्हें इतना बड़ा बना दिया था कि क्या कहें .....सामान्य परिवार में जन्में और देश के प्रधानमंत्री बने। मेरे पिता पेशे से एक शिक्षक थे तो वो मुझे बचपन में स्वतन्त्रा वीरों की कहानियां और किस्से सुनाया करते थे ऐसे ही कुछ किस्से आप सुधियों से यहाँ बांटना चाहता हूं..... मेरे पिता जी बताते थे कि जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे तब दिल्ली में एक दर्जी की दुकान पर पहुँचे, दर्जी बहोत खुश हुआ उसने सोचा कि आज तो अपनी अच्छी कमाई होगी देश के प्रधानमंत्री अपनी दुकान पर आए हैं, लेकिन शास्त्री जी ने एक पेपर में लिपटे तीन पुराने कुर्ते निकाले और दर्जी की ओर बढ़ाते हुए बोले कि इन तीन कुर्तों में से दो की कालर गल गईं हैं तो आप एक कुर्ते के कपड़े से इन दो कुर्तों की कॉलर दुरुस्त कर दो और कितना मेहनताना हुआ बता दो... दर्जी आवक सा देखता रह गया कि इस देश का प्रधानमंत्री इस तरह कपड़े रफू करवाने की बात कर रहा है उसने शास्त्री जी के पैर छुए और उसकी आँखों में भी मेरी तरह आसूं भर आए..(ये प्रसंग लिखते लिखते मेरी आँखें भर आईं हैं) हालांकि शास्त्री जी ने उस दर्जी को उसका मेहनताना जरूर दिया। इसी तरह का एक वाक्या और याद आया मुझे....एक समय हमारे देश को अकाल से जूझना पड़ा था और उस वक़्त हमें अनाज आयात करवाना पड़ रहा था । उस विकट समय में लाल गेहूं (सबसे निम्न गुणवत्ता का) लोग खाने को मजबूर थे। उस समय भी देश के प्रधानमंत्री शास्त्री जी ही थे। तो मेरे पिता जी बताते थे कि जब एक दिन एक अधिकारी ने शास्त्री जी की रसोई में झांका तो उनकी पत्नी लाल गेहूं चक्की में पीस रही थीं। उस अधिकारी ने कहा भी कि मैं अच्छे गेहूं मंगवा देता हूँ लेकिन शास्त्री जी ने ये कहते हुए बड़ी विनम्रता से मना कर दिया कि  *"जब मेरा देश ये गेहूं खाने को मजबूर है तो मैं कैसे अच्छा अनाज और भोजन कर सकता हूँ"....* उन्होंने एक समय भोजन उस समय करना शुरू कर दिया था जो मृत्यु पर्यन्तर तक जारी रहा।।


     *"मौत भी संदेहास्पद".....*                 शास्त्री जी की मौत ताशकंद समझौते के बाद हुई थी और उनकी मौत का कारण भी आज तक संदेहास्पद ही है। ऐसा बताते हैं कि भारत पाक के इस समझौते से वो सहमत नहीं थे लेकिन मजबूरी में मन मानकर उन्होंने साइन किए थे। उनकी मौत के बाद शरीर पूरा नीला पड़ गया था।। 
 
 *नोट-----मेरी इस मन की बात से ऐसा कतई नहीं है कि मैं बापू विरोधी हूँ और गोडसे समर्थित हूँ....बस मन व्यथित हुआ तो आप सुधियों से मन की बात कर ली....वैसे शास्त्रीजी ,बापू जी जैसे लोकनायक अब तो शायद ही जन्म लें.......                                        चलिए अब चलता हूँ फिर मिलने के वादे के साथ तब तक आप अपना जलवा क़ायम रखें और दुनिया जले तो जलने दें।।*


 आप जल्वेदारों में से एक जल्वेदार.....    *जय कौशल✍🧐🏹*                       उज्जैन (म.प्र.)                                           09827560667                                        07000249542